देव पंडित से पूर्वमीमांसा शास्त्र और शेष[१] वीरेश्वर पंडित से व्याकरण महाभाष्य पढ़ा था। इसके अतिरिक्त वे वेदादिक अन्य शास्त्रों के भी ज्ञाता थे, जैसा कि रसगंगाधर के 'सर्व विद्याधर'[२] पद से सूचित होता है। पंडितराज ने प्रायः इन्ही से अध्ययन किया था; पर इनके गुरु शेष वीरेश्वर से भी कुछ पढ़ा हो ऐसा प्रतीत होता है, यह बात 'मनोरमाकुचमर्दन' नामक ग्रंथ के 'अस्मद्गुगुरूपंडितवीरेश्वराणाम्' इस पद से सूचित होती है। ये स्वयं भी वेद, वेदांत, न्याय, वैशेषिक, मीमांसा, व्याकरण और साहित्य आदि शास्त्रों के महाविद्वान् थे, ऐसा रसगंगाधर मे स्थान स्थान पर उद्धृत प्रमाणों, लेखों और प्रतिपादन-शैली से सिद्ध है और इस विषय में किसी प्रकार के प्रमाण की आवश्यकता नहीं रहती।
जब ये नवयुवक ही थे, उसी समय, इनका, तत्कालीन बादशाह शाहजहाँ के दरबार मे प्रवेश हो गया था, और बादशाह ने इनकी विद्वत्ता से संतुष्ट होकर इन्हें 'पंडितराज'[३] की पदवी प्रदान की थी। इनकी युवावस्था का अधिकांश शाहजहाँ[४]