पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१५०

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इत्यादिक स्थलों मे हेतु से कार्य-ज्ञान होता है, और "हेतु से कार्य के ज्ञान होने का नाम अनुमान है, और व्यंजना से भी यही वात होती है, अत: व्यंजना और अनुमान मे कोई भेद नहीं।" इसका खंडन करते हुए, "व्यभिचारी (अन्यगामी) और प्रसिद्ध होने का जिन हेतुओं मे सन्देह है, उनसे भी अर्थ ध्वनित हो सकता है, पर अनुमान नही हो सकता यह स्वीकार किया है। इसी प्रकार "ध्वनि" (व्यंजनावृत्ति और व्यंग्यों के प्रतिपादन के मूलग्रंथ) के कर्धा (राजानक आनंदवर्धनाचार्य) ने भी माना है। तब यह सिद्ध हुआ कि "जिन शब्दों अथवा अर्थों से अन्य अर्थ ध्वनित होते है, वे व्यंजक अर्थ साधारण ही होते हैं, अर्थात् वे व्यंग्य से भी संबंध रखते हैं, और अन्यों से भी अनुमान की तरह असाधारण नहीं" इस वात को प्रतिपादन करनेवाले प्रामाणिक विद्वानों के ग्रंथों के साथ, उन व्यंजकों को असाधारण-किसी विशेष वस्तु से ही संबंध रखनेवाले-बतानेवाले तुम्हारे ग्रंथ का, विरोध स्पष्ट है।


लिये जाया करते थे, इस कारण संकेत का भंग होते देखकर उसने उनसे कहा-

हे धर्मचारिन्। अब आप विश्वस्त होकर फिरते रहिए, क्योंकि जिस कुत्ते से आप डरा करते थे, उस कुत्ते को, आज, गोदावरी नदी के जलप्राय प्रदेश के कुंज में रहनेवाले मत्त सिंह ने मार दिया।
तात्पर्य यह है कि घर मे कुत्ते से डरनेवाले पंडितजी! यदि आप कुंज मे पहुंचे तो फिर प्राणों का कुशल नहीं है उन्हें विदाई देनी ही पड़ेगी। इस से यह अभिव्यक्त होता है कि "आप वहाँ न जाइएगा।"