पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१५३

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वहाँ जाने का फल "रमण"। इनमे से "उसके पास ही गई थी" इस अंश को व्यंग्य सिद्ध करना, तुम्हारे हिसाब से, कठिन है। तुमने जो रीति बताई है, उसके अनुसार "सब चंदन हट गया" इत्यादि विशेषण वाक्यों के अर्थ बावड़ी के स्नान मे तो लग नहीं सकते, क्योंकि तुमने वैसा करने मे बाधा उपस्थित कर दी है; समझा दिया है कि वे वापी-स्लान मे नही लग सकते, अतः वाच्यार्थ में सब वाक्य के जो प्रधान अर्थ हैं कि "बावड़ी नहाने गई थी, उसके पास नहीं गई इन शब्दों मे विपरीत लक्षणा करनी पड़ेगी, तब उनका यह अर्थ होगा कि "बावड़ी नहाने नही गई", "उसके पास ही गई थी। अर्थात् वाच्य अर्थ मे जहाँ "गई थी" कहा है, वहाँ "नही गई थी" अर्थ करना पड़ेगा और जहाँ “नहीं गई थी" कहा है, वहाँ "गई थी" अर्थ करना पड़ेगा, अन्यथा बात ही न बनेगी। और वाच्यार्थ के बाधित होने पर जो अर्थ प्रकट होता है, वह व्यंजना से बोधित होता है अथवा व्यंग्य होता है, यह कहना उचित नहीं; क्योंकि वह लक्षणा का ही विषय है व्यंजना का नही। जैसे "अहो पूर्ण सरो यत्र लुठन्तः स्नांति मानवा:- अर्थात् आश्चर्य है कि यह सरोवर पूरा भरा हुआ है, जिसमे मनुष्य लेटते हुए नहा रहे हैं। इस वाक्य मे नहानेवाले मनुष्यों का विशेषण जो "लेटते हुए" है, उससे प्रकट होता है कि "तालाव भरा हुआ नही है। इस अर्थ को कोई भी व्यंग्य नहीं बता सकता, यह लक्ष्य ही है। तब सिद्ध हुआ