पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१५८

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यहाँ एक विचार और है। काव्यप्रकाश के टीकाकारों ने "प्रताशि गुणीभूतव्यंग्य व्यंग्ये तु मध्यमम्" इस गुणीभूत व्यंग्य के लक्षण की व्याख्या करते हुए लिखा है कि "गुणीभूत व्यंग्य उसी का नाम है, जो "चित्र (अलंकारप्रधान) काव्य" न हो। पर यह उनका कथन ठीक नहीं; क्योंकि पर्यायोक्ति, समासोक्ति आदि अलंकार जिनमे प्रधान हों, उन काव्यों मे अव्याप्ति हो जायगी-अर्थात् उनका यह लक्षण न हो सकेगा। और होना चाहिए अवश्य, क्योंकि सभी अलंकारशास्त्र के ज्ञाताओं ने उनको गुणीभूत व्यंग्य और चित्र दोनों माना है। अतः जो चित्र-काव्य हो, वह गुणीभूत व्यंग्य न हो सके यह कोई बात नहीं।

अच्छा, अब उत्तम काव्य का उदाहरण लीजिए-

राघवविरहज्वालासंतापितसह्यशैलशिखरेषु।
शिशिरे सुखं शयानाः कपयः कुप्यंति पवनतनयाय॥

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रघुवर-विरहानल तपे सह-शैल के अत।
सुख सौ सोए, शिशिर मे कपि कोपे हनुमत॥

भगवान रामचंद्र के विरहानल की ज्वालाओं से संतप्त सह्याचल के शिखरों पर, ठंड के दिनों मे, सुख से सोए हुए बंदर हनुमान पर क्रोध कर रहे हैं।

इस श्लोक का व्यंग्य अर्थ यह है कि "जानकीजी की कुशलता सुनाकर हनुमान ने रामचंद्र को शीतल कर दिया,