भी है ही; तथापि वह चमत्कार उत्प्रेक्षा के चमत्कार के अंदर घुसा हुआ सा प्रतीत होता है, जैसे किसी ग्रामीण नायिका कागोरापन केसर-रस के लेप के अंदर छिपा हुआ दिखाई देता हो। हाँ, इस बात में कोई संदेह नहीं कि कोई भी वाच्य-अर्थ ऐसा नहीं है, जो व्यंग्य अर्थ से थोड़ा बहुत संबंध रखे विना स्वतः रमणीयता उत्पन्न कर सके अर्थात् वाच्य-अर्थ मे रमयीयता उत्पन्न करने के लिये व्यंग्य का संबंध आवश्यक है।
वाच्य चित्रो को किस भेद मे समझना चाहिए?
इन्ही दूसरे और तीसरे (उत्तम और मध्यम)भेदो मे, जिनमे से एक मे व्यंग्य जगमगाता हुआ होता है और दूसरे मे टिमटिमाता, सब अलंकारप्रधान काव्य प्रविष्ट हो जाते हैं अर्थात् 'वाच्यचित्र' काव्यों का इन्ही दोनों भेदों मे समावेश है।
अधम काव्य
जिस काव्य में शब्द का चमत्कार प्रधान हो और अर्थ का चमत्कार शब्द के चमत्कार का शोभित करने के लिये हो, वह "अधम काव्य" कहलाता है;
- जैसे-
मित्रात्रिपुत्रनेत्राय त्रयीशात्रवशत्रवे।
गोत्रारिगोत्रजत्राय गात्रात्रे ते नमो नमः॥
भक्त कहता है-सूर्य और चंद्र जिनके नेत्र हैं, जो वेदो के शत्रुओं (असुरों) के शत्रु हैं और इंद्र के वंशजो (देव-
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