पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१६६

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क्योंकि उनका तारतम्य स्पष्ट दिखाई देता है। कौन ऐसा सहृदय पुरुष होगा कि जो-

विनिर्गतं मानदमात्ममन्दिरा-
द्भवत्युपश्रुत्य यहच्छयाऽपि यम्।
ससंभ्रमेन्द्रद्रुतपातितार्गला
निमीलिताक्षीव भियाऽमरावती॥*[१]

एवम्

सच्छिन्नमूलः क्षतजेन रेणु-
स्तस्योपरिष्टात्पवनावधूतः।
अङ्गारशेषस्य हुताशनस्य
पूर्वोत्थितो धूम इवाऽऽबभासे॥†[२]


  1. * यह हयग्रीव राक्षस का वर्णन है। इसका अर्थ यों है-मित्रो के सम्मानदाता अथवा शत्रुओं के दर्पनाशक जिस हयग्रीव का, स्वेच्छापूर्वक भी (न कि किसी चढ़ाई आदि के लिये), घर से निकलना सुनकर, घबड़ाए हुए इंद्र के द्वारा शीघ्रता से डलवाई गई हैं अर्गले जिसमे ऐसी अमरावती (देवताओं की पुरी), माना, डर के मारे आँखे मीच लेती है।
  2. † यह रण-वर्णन है। इसका अर्थ यों है-चौड़ों की टापों आदि से जो रज उडी थी, उसकी जड़ (पृथ्वी से सटा हुआ भाग) रुधिर ने काट दी, और वह उस रुधिर के ऊपर ही ऊपर उड़ने लगी। वह (रज) ऐसे शोभित होती थी, माना, आग के केवल अँगारे शेप रह गए हैं और उससे जो पहले निकल चुका था, वह धुओं (अपर उड़ रहा) है।