पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१६७

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इत्यादि काव्यों के साथ

स्वच्छन्दोच्छलदच्छकच्छकुहरच्छातेतराम्बुच्छटा
मूर्छन्मोहमहर्षिहर्षविहितस्नानाहिकालाय वः।
भिन्द्यादुधदुदारदर्दुरदरी दीर्घादरिद्रुम-
द्रोहो केमहोर्मिमेदुरमदा मंदाकिनी मंदताम्॥*[१]

इत्यादि काव्यों की, जिनको केवल साधारण श्रेणी के मनुष्य सराहा करते हैं, समानता बता सकता है। और यदि तारतम्य के रहते हुए भी दोनो को एक भेद बताया जाता है, तो जिनमे बहुत ही कम (व्यंग्य की प्रधानता और अप्रधानता का ही) अंतर है, उन "ध्वनि" और "गुणीभूतव्यंग्य" को पृथक् पृथक भेद मानने के लिये क्यों दुराग्रह है? अतः काव्य के चार भेद मानना ही युक्तियुक्त है।

शब्द-अर्थ दोनों चमत्कारी हों, तो किस भेद मे समावेश करना चाहिए ?


  1. वह गङ्गा आपके अज्ञान को शीघ्र नष्ट करे, जिसके स्वतंत्र उछलते हुए और स्वच्छ जलप्राय प्रदेश के खड्डों के प्रबल जल की परंपरा महपियों के अज्ञान का नाश करनेवाली है और जिस जलपरम्परा मे वे लोग स्नान एवं नित्यनियम किया करते हैं, जिसकी कंदराओं में, तरंगो की चोट से ऊपर का भाग गिर जाने के कारण, बड़े बड़े मेढक दिखाई देते है और विस्तृत एवं सघन वृक्षो के गिराने के कारण अधिकता से युक्त लहरे ही जिसका गहरा मद है।