पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१६८

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जिस काव्य में शब्द और अर्थ दोनों का चमत्कार एक ही साथ हो, वहाँ यदि शब्द-चमत्कार की प्रधानता हो, तो अधम और अर्थ-चमत्कार की प्रधानता हो, तो मध्यम कहना चाहिए। पर यदि शब्द-चमत्कार और अर्थ-चमकार दोनों समान हों, तो उस काव्य को मध्यम ही कहना चाहिए। जैसे—

उल्लासः फुल्लपङ्केरुहपटलपतन्मत्तपुष्पन्धयानां
निस्तारः शोकदावानलविकलहृदां कोकसीमन्तिनीनाम्।
उत्पातस्तामसानामुपहतमहसां चक्षुषां पक्षपातः
संपातः कोऽपि धाम्नामयमुदयगिरिप्रांततः प्रादुरासीत्॥

खिले हुए कमलो के मध्य से निकलते हुए (रात भर मधुपान करके) मत्त भ्रमरों का उल्लास (आनंददाता), शोकरूपी दावानल से जिनका हृदय विकल हो रहा था, उन चक्रवाकियों का निस्तार (दुःख मिटानेवाला), जिन्होंने तेज को नष्ट कर दिया था, उन अंधकार के समूहों का उत्पाव (नष्ट करनेवाला) और नेत्रों का पक्षपात (सहायक) एक तेज का पुख उदयाचल के प्रांत से प्रकट हुआ।

इस श्लोक में शब्दों से वृत्त्यनुप्रास की अधिकता और ओजगुण के प्रकाशित होने के कारण शब्द का चमत्कार है, और प्रसाद-गुण-युक्त होने के कारण शब्द सुनते ही ज्ञात हुए "रूपक" अथवा "हेतु" अलङ्कार रूपी अर्थ का चमत्कार है।