पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१६९

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सो श्लोक में दोनों—शब्द और अर्थ के चमत्कारों—के समान होने के कारण दोनों की प्रधानता समान ही है; इस कारण इसे मध्यम काव्य कहना ही उचित है। हिंदी में, इस श्रेणी में, पद्माकर के कितने ही पद्य आ सकते हैं।

ध्वनि-काव्य के भेद

काव्य का उत्तमोत्तम भेद जो "ध्वनि" है, उसके यद्यपि असंख्य भेद हैं, तथापि साधारणतया कुछ भेद यहाँ लिखे जाते हैं। ध्वनि-काव्य दो प्रकार का होता है—एक अभिधामूलक और दूसरा लक्षणामूलक। उनमें से पहला अर्थात् अभिधामूलक ध्वनि-काव्य तीन प्रकार का है—रसध्वनि, वस्तुध्वनि और अलङ्कारध्वनि। "रसध्वनि" यह शब्द यहाँ असंलक्ष्यक्रम-ध्वनि (जिसमे ध्वनित करनेवाले और ध्वनित होने के मध्य का क्रम प्रतीत नहीं होता) के लिये लाया गया है, अतः "रस-ध्वनि" शब्द से रस, भाव, रसाभास, भावाभास, भावशांति, भावोदय, भावसंधि और भावशबलता सबका ग्रहण समझना चाहिए। दूसरा (लक्षणामूलक ध्वनि-काव्य) दो प्रकार का है—अर्थातरसंक्रमित वाच्य और अत्यंततिरस्कृत वाच्य। इस तरह ध्वनिकाव्य के पाँच भेद हैं। उनमें से "रस-ध्वनि" सबसे अधिक रमणीय है, इस कारण पहले रस-ध्वनि का आत्मा जो "रस" है, उसका वर्णन किया जाता है।