पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१९१

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वाचक शब्द लिखे नही रहते, और उसका बोध करानेवाली व्यंजना को ये स्वीकार नहीं करते, अतः इन्हे रति आदि के ज्ञान के लिये, पहले, (नट आदि को) चेष्टा आदि कारणो से सिद्ध अनुमान स्वीकार करना पड़ेगा। अर्थात् इनके मन मे रति आदि का, चेष्टा आदि का द्वारा, अनुमान कर लिया जाता है।

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एक दल (भट्टलोल्लट इत्यादि) का मत

विद्वानों के एक दल का मत है कि दुष्यंत आदि मे रहनेवाले जो रति आदि है, प्रधानतया, वे ही रस हैं; उन्ही को, नाटक मे, सुंदर विभाव आदि का अभिनय दिखाने में निपुण दुष्यंत आदि का पार्ट लेनेवाले नट पर और काव्य मे काव्य पढ़नेवाले व्यक्ति के ऊपर आरोपित करके हम उसका अनुभव कर लेते हैं। इस मत मे भी रस का अनुभव, पूर्व मत की तरह, (तीनों प्रकार से ) 'शकुंतला के विषय मे जो रति है, उससे युक्त यह (नट ) दुष्यंत है' इत्यादि समझना चाहिए । इस मत के अनुसार "शकुंतला के विषय मे जो रति है उससे युक्त यह (नट) दुष्यंत है इस बोध मे दो अंश हैं, एक नट विषयक, दूसरा दुष्यंत विषयक आदि। इसमे नट जो विशेष्य है उसके सामने रहने से उसका बोध लैौकिक और बाकी का अलौकिक है।