पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/१९२

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(६)
कुछ विद्वानो (श्रीशंकुक प्रभृति) का मत है

कि दुष्यंत आदि में जो रति आदि रहते हैं, वे ही जब नट अथवा काव्यपाठक मे, उसे दुष्यंत समझकर, अनुमान कर लिए जाते हैं, तो उनका नाम 'रस' हो जाता है। नाटक आदि मे जो शकुंतला आदि विभाव परिज्ञात होते हैं, वे यद्यपि कृत्रिम होते हैं, तथापि उनको स्वाभाविक मानकर और नट को दुष्यंत मानकर पूर्वोक्त विभावादिकों से नट आदि मे रति आदि का अनुमान कर लिया जाता है। यद्यपि दुष्यंत आदि के चरित्रों का उससे भिन्न नट आदि के विषय मे अनुमित होना नियम-विरुद्ध है, तथापि अनुमान की सामग्री के बलवान होने के कारण, वह बन जाता है।

(७)
कितने ही कहते हैं

विभाव, अनुभाव और संचारी भाव ये तीनों ही सम्मिलित रूप मे रस कहलाते हैं।

(८)
बहुतेरों का कथन है

कि तीनो मे जो चमत्कारी हो, वही रस है, और यदि चमत्कारी न हो तो तीनो ही रस नही कहला सकते।

(९)
इनके अतिरिक्त कुछ लोग कहते हैं

कि बार बार चिंतन किया हुआ विभाव ही रस है।