पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२०५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( ९० )


होती है, तब वह अमर्ष नामक व्यभिचारी कहलाती है। 'अमर्ष' और 'क्रोध' मे यही भेद है।

४-क्रोध

जिसकी, शत्रु के पराक्रम तथा किसी के दान आदि के स्मरण से, उत्पत्ति होती है, और जिसका नाम उन्नतता है, उसे 'उत्साह' कहते हैं।

६-विस्मय

जिसकी, अलौकिक वस्तु के देखने आदि से, उत्पत्ति होती है, और जिसका नाम आश्चर्य है, उसे 'विस्मय' कहते हैं।

७-हास

जिसकी, वाणी एवं अंगों के विकारो के देखने आदि से, उत्पत्ति होती है, और जिसका नाम खिल जाना है, उसे 'हास' कहते हैं।

८-भय

जिसको, व्याघ्र आदि के देखने आदि से उत्पत्ति, होती है, और जो प्रबल अनर्थ के विषय मे हुआ करती है, एवं जिसका नाम व्याकुलता है, उसे 'भय' कहते हैं। यदि वही व्याकुलता किसी प्रबल अनर्थ के विषय मे न हुई हो, तो उसे 'त्रास' नामक व्यभिचारी भाव कहते हैं। पर दूसरे विद्वानों का यह भी कथन है कि उत्पातकारी वस्तुओं के द्वारा उत्पन्न हुई व्याकुलता का नाम 'त्रास' है, और अपने अपराध के द्वारा उत्पन्न होनेवाली का नाम 'भय' । भय और त्रास मे यह भेद है।