पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२२

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देंगे। जब वे उन्हें साथ ले पाए, तब पंडितराज ने कहा कि—'पहली बात का—अर्थात् राजपूत लोगों के वास्तविक क्षत्रिय होने का—जवाब तो हम आज ही दे सकते हैं; पर दूसरी बात का—अर्थात् अरबी संस्कृत से प्राचीन है, इसका जवाब तब दिया जा सकता है जब हम अरबी पढ़ लें। सो राजाजी ने उन्हें अरबी पढ़ने की अनुमति दी और उन्होंने कुछ दिन आगरे मे रहकर अरबी का यथेष्ट ज्ञान प्राप्त कर लिया। तदनंतर ये बादशाह के सामने उपस्थित किए गए। पूछने पर इन्होंने पहली बात का यह प्रत्युत्तर दिया कि—'निःक्षत्रिय होने का अर्थ यदि यह लगाया जाता है कि एक भी क्षत्रिय नहीं बचा, तो फिर आप ही कहिए कि पृथ्वी २१ बार कैसे निःक्षत्रिय हुई, क्योंकि क्षत्रियमात्र की समाप्ति तो एक ही बार में हो गई होगी। और यदि यह कहो कि कुछ बच रहते थे, तो जब २० बार बचते रहे तो २१वीं बार भी अवश्य ही कुछ बच रहे होंगे। बस, उन्हीं की संतान ये राजपूत लोग हैं।' और दूसरी बात के उत्तर के विषय मे यों कहा जाता है कि अरबी भाषा में मुसलमानों की एक धर्मपुस्तक बताई जाती है, जिसका नाम 'हदीस' है। उसमें एक जगह यह लिखा है कि—'ऐ मुसलमानो! हिंदू लोग जिस तरह मानते हैं, उससे उलटा तुम्हें मानना चाहिए।' सो पंडितराज ने कहा कि 'बिना भाषा के तो कोई धर्म हो नहीं सकता, और आपका 'हदीस' इस बात की सूचना देता है कि उस वाक्य से पहले भी हिदुओं