पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२२०

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मेरे लिये यह क्या अधिक बात है कि मैं मॉगने आए हुए ब्राह्मण को, साधारण से, कवच और कुंडल अर्पण कर रहा हूँ। लीजिए, यदि वह चाहे तो, निर्दयता के साथ, तलवार से तत्काल काटकर गहरी रुधिर-धारा झरते हुए (अपने) शिर को भी निवेदन कर रहा हूँ। यह, ब्राह्मण का वेष धारण करके आए हुए इंद्र को कवच और कुण्डल देने के लिये, उद्यत देखकर, उस दान से आश्चर्ययुक्त सभासदो के प्रति, कर्ण का कथन है।

यहाँ माँगनेवाला आलंबन है, उसकी वर्णन की हुई स्तुति उद्दीपन है, कवचादिक का दान करना और उनको साधारण समझना अनुभाव है और 'मेरे लिये' इस शब्द से 'अर्थीतरसंक्रमितवाच्य ध्वनि' से सूचित किया हुआ गर्व एव अलौकिक पिता भगवान् भुवन-भास्कर से अपने उत्पन्न होने आदि का स्मरण संचारी भाव है। इस पद्य की रचना भी उन उन अर्थों के अनुकूल ओज और मृदुता दोनों से युक्त होने के कारण सहृदयों के हृदय (अन्तःकरण) मे चमत्कार उत्पन्न कर देनेवाली है। देखिए-पूर्वार्ध मे कवच और कुण्डल के अर्पण को साधारण बताना उत्साह का पोषक है इसलिये उसके अनुकूल मृदुरचना है, और उत्तरार्ध मे '......मौलि' के पहले, वक्ता के गर्व और उत्साह को पुष्ट करने के लिये, उद्धत है; पर उसके बाद ब्राह्मण के विषय मे विनययुक्तता प्रकाशित करने के लिये फिर मृदु है। इसी कारण 'निवेदन कर रहा हूँ!