पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२२२

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के दान का वर्णन उद्दीपन है, गादी से करते हुए नवीन दूध का समूह अनुभाव है और ईर्ष्या के द्वारा ध्वनित हुई राजा के दान-वर्णन को साधारण दिखाने की बुद्धि, जिसे 'असूया' कहना चाहिए, वह और अन्य ऐसी ही चित्तवृत्तियाँ संचारी भाव हैं। इनके संयोग से यद्यपि कामधेनु का उत्साह अमिव्यक्त होता है; तथापि वह राजा की स्तुति की अपेक्षा गौण हो गया है, अतः उसको लेकर यहाँ वीर-रस नहीं कहा जा सकता। इसी कारण यह उदाहरण भी नहीं बन सकता-

साब्धिद्वीपकुलाचलां वसुमतीमाक्रम्य सप्तान्तरां
सवी द्यामपि सस्मितेन हरिणा मन्दं समालोकितः।
प्रादुर्भूतपरप्रमोदविदलद्रोमाञ्चितस्तत्क्षणं
व्यानम्रीकृतकन्धरोऽसुरवरो मौलिं पुरो न्यस्तवान्।

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उदधि, दीप, कुल-अचल सहित सब भुवहि स्ववश कै।
सब सुरगहु कों, लगे देखिवे हरि सस्मित ह्वै॥
उपज्यो परम प्रमोद, भयो पुलकित, अरु सत्वर।
शिर आगे धरि दीन्ह असुर, करि नम्र शिरोधर॥

समुद्रो, द्वीपो एवं कुलपर्वतों के सहित पृथ्वी को और सात कोटवाले समग्र वर्ग को भी आक्रमण करने के अनन्तर भगवान् वामन ने जव कुछ हँसकर राजा बलि की तरफ (तीसरे पैंड के लिये ) थोड़ा सा देखा, तो उस असुरश्रेष्ठ ने अत्यन्त