पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२२३

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आनन्द की उत्पत्ति के कारण पुलकित होकर, तत्काल गरदन नीची करके सिर सामने रख दिया, कहा-लो, एक पैर इस पर भी धरकर इसे भी स्वीकार कर लो।

यहाँ भगवान् वामन आलंबन है, उनका थोड़ा सा देखना उद्दीपन है, रोमांचादिक अनुभाव हैं और हर्षादिक संचारी भाव हैं । यद्यपि इनके संयोग से 'उत्साह' अभिव्यक्त होता है, तथापि वह गौण हो गया है; क्योकि जिस तरह पहले पद्य मे दूसरे (कामधेनु) का उत्साह राजा की स्तुति को उत्कृष्ट करनेवाला था, उसी तरह यहाँ राजा (बलि) का उत्साह भी राजा की स्तुति को उत्कृष्ट करता है; सो स्तुति प्रधान हुई और उत्साह गौण।

इससे यह भी सिद्ध हुआ कि काव्यपरीक्षा-कर्त्ता श्रीवत्सलांछन भट्टाचार्य ने जो वीर-रस का यह उदाहरण दिया है-

'उत्पत्तिर्जमदग्नितः स भगवान् देवः पिनाकी गुरुः।
शौर्यं यत्तु न तद् गिरां पथि ननु व्यक्तं हि तत् कर्मभिः।
त्यागः सप्तसमुद्रमुद्रितमहीनिर्व्याजदानावधिः
क्षत्त्रब्रह्मतपोनिधेर्गगवतः किंवा न लोकोत्तरम्॥'

'महावीरचरित' नाटक के द्वितीय अंक मे धनुष तोड़ने से कुपित परशुराम के प्रति यह रामचन्द्र की उक्ति है-

भगवन्। आपकी महिमा लोकोत्तर है, आपके पिता महर्षि जमदग्नि हैं, आपने साक्षात् शिवजी से धनुर्वेद का अध्य-