पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२२६

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निर्मम होकर, इसे, तिनके की तरह तुझे सौंप दिया है। यह राजा शिबि की, पहले पद्य मे कबूतर के प्रति और दूसरे पद्य मे बाज के प्रति, उक्ति है।

यहाँ कबूतर आलंबन है, उसका व्याकुल होना उद्दीपन है और उसके लिये अपने शरीर का अर्पण करना अनुभाव है।

पर यह कहना कि 'इस पद्य मे शरीर के दान की प्रतीति होती है, इस कारण यह दानवीर की 'ध्वनि' हो जायगा, उचित नहीं; क्योंकि बाज का कबूतर खाद्य पदार्थ है, अतः वह कबूतर का याचक हो सकता है, राजा के शरीर का नहीं। बाज को जो शरीर दान किया गया है, सो तो कपात के शरीर की रक्षा के लिये बदले मे दिया गया है, वह दान नही, कितु 'लेन-देन' है। तीसरा युद्धवीर, जैसे-

रणे दीनान् देवान् दशवदन! विद्राव्य वहति
प्रभावप्रागल्भ्यं त्वयि तु मम कोऽयं परिकरः।
ललाटोद्यज्ज्वालाकवलितजगज्जालविभवो
भवो मे कोदण्डच्युतविशिखवेगं कलयतु॥

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दीन-देवतनि दशवदन, रन छुड़ाइ तूं आज।
है प्रभाव-शाली, कहा तो साज-समाज॥
तोपै साज-समाज भाल की धधकत झारन
जारि दियो जिन विश्व वहै शिव बूझैं इहि रन॥