पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२३७

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और हसित, मध्यम पुरुष मे विहसित और उपहसित तथा नीच पुरुष में अपहसित और प्रतिहसित होते हैं। जिसमे कपोल थोड़े विकसित हों, नेत्रों के प्रान्त अधिक प्रकाशित न हों, दाँत दिखाई न दें और जो मधुर हो, वह हँसना स्मित कहलाता है। जिस हँसने मे मुख, नेत्र और कपोल विकसित हो जाये और कुछ कुछ दॉत भी दिखाई दें, उसे हसित माना जाता है। जिस हँसने मे शब्द होता हो, जो मधुर हो, जिसकी पहुँच शरीर के अन्य अवयवों मे भी हो, जिसमे मुंह लाल हो जाये, आँखें कुछ कुछ मिंच जाय और ध्वनि गंभीर हो, उसे विद्वान् लोग विहसित कहते हैं। जिसमे कन्धे और सिर सिकुड़ जायँ, टेढ़ी नजर से देखना पड़े और नाक फूल जाय उस हँसने का नाम उपहसित है। जो हँसना बे-मौके हो, जिसमें आँखों मे आँसू आ जाय और कंधे एवं केश खूब हिलने लगे, उस हंसने का शाङ्ग देव आचार्य ने अपहसित नाम रखा है। जिसमे बहुत भारी और कानों को अप्रिय लगनेवाला शब्द हो, नेत्र ऑसुओं के मारे भर जायँ और पसलियों को हाथों से पकड़ना पड़े, वह हँसना अतिहसित कहलाता है।

भयानक-रस; जैसे-

श्येनमम्बरतलादुपागत शुष्यदाननबिलो विलोकयन्।
कम्पमानतनुराकुलेक्षणः स्पन्दितुन हि शशाक लावकः॥

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