पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२४७

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यहाँ देवांगनाओं को प्रालंबन मानकर श्रृंगार-रस और वीरों के मृतक शरीरों को आलंबन मानकर बीभत्स-रस की प्रतीति होती है। ये दोनों परस्पर विरुद्ध हैं, अतः इन दोनों के मध्य मे वीरों की स्वर्गप्राप्ति का वर्णन करके उसके द्वारा आक्षिप्त वीर-रस प्रविष्ट कर दिया गया है। बीच में प्रवेश करने का अर्थ यह है कि परस्पर विरोधी रसों के आखादन का जो समय है उसके मध्य के समय मे उसका पाखादन होना। सो देखिए, यहाँ स्पष्ट ही है कि पूर्वोक्त पद्य के पूर्वार्ध मे शृंगार-रस का प्रावादन होने के अनंतर वोर-रस का प्रास्वादन होता है और उसके अनंतर दूसरे अर्द्ध मे बीभत्स का।

भूरेणुदिग्धान् नवपारिजात-
मालारजोवासितबाहुमध्याः।
गाढं शिवाभिः परिरभ्यमाणान्
सुराङ्गनाश्लिष्टभुजान्तरालाः॥
सशोणितैः क्रव्यभुजां स्फुरद्भिः
पक्षः खगानामुपवीज्यमानान्।
संवीजिताश्चन्दनवारिसेकैः
सुगन्धिभिः कल्पलतादुकूलैः॥
विमानपर्यङ्कतले निषण्णाः
कुतूहलाविष्टतया तदानीम्।