पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२५२

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पहले के द्वारा करुण-रस की और दूसरे के द्वारा श्रृंगार-रस की अभिव्यक्ति होती है, और वे दोनों रस ( परस्पर विरोधी होने पर भी ) राजा के विषय मे जो कवि का प्रेम है, उसके अंग हो गए हैं, अत: उनमे कुछ भी विरोध नहीं रहा।

विरोधी रस के वर्णन की आवश्यकता

सच पूछिए तो प्रकरण-प्राप्त रस को अच्छी तरह पुष्ट करने के लिये विरोधी रस का बाधित करना उचित है, अतः उसका वर्णन अवश्य करना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से, जिस रस का वर्णन किया जा रहा है, उसकी शोभा, वैरी का विजय कर लेने के कारण, अनिर्वचनीय हो जाती है। रस के बाधित किए जाने का अर्थ यह है कि विरोधी रस के अंगों के प्रबल होने के कारण, अपने अंगों के विद्यमान होने पर भी रस की अभिव्यक्ति का रुक जाना। अर्थात् किसी रस के अभिव्यक्त होने की सामग्रो के होने पर भी, दूसरे रस की सामग्री के प्रबल होने के कारण, उसके अभिव्यक्त न होने का नाम है रस का बाध्य होना । पर व्यभिचारी भावों का वाध्य होना तो इसी का नाम है कि उनके द्वारा जिस रस की अभिव्यक्ति होनी चाहिए थी, उसका न होना, न कि व्यभिचारी भावों की ही अभिव्यक्ति का न होना; क्योंकि व्यमिचारी भावों की अभिव्यक्ति में बाधा उत्पन्न करनेवाला कोई नहीं है। आप कहेगे कि क्यों नहीं, विरोधी रस के अंगरूप भावों की अभिव्यक्ति होने से रुकावट हो जायगी और