पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२५६

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का वर्णन करना उचित नहीं; क्योंकि ऐसा करने से नायक के उत्कर्ष का वर्णन, जिसका करना अभीष्ट है, सिद्ध न होगा और उसके कारण होनेवाली रस की पुष्टि भी न होगी। आप कहेंगे-प्रतिनायक के उत्कर्ष का वर्णन तो उसको परास्त करनेवाले नायक के उत्कर्ष का अंग है-उस वर्णन से तो नायक का और भी अधिक उत्कर्ष सिद्ध होता है; फिर आप उसका वर्णन क्यों अनुचित मानते हैं? हम कहेगे कि जैसा प्रतिनायक का उत्कर्ष, उसे परास्त करनेवाले नायक के उत्कर्ष का अंग हो सके, वैसे उत्कर्ष का वर्णन हमे स्वीकृत है-हम तो उसी उत्कर्ष वर्णन का निषेध कर रहे हैं, जो नायक के उत्कर्ष के विरुद्ध हो। पर यदि आप कहे कि प्रकृत नायक की अपेक्षा प्रतिपक्षी का उत्कर्ष वर्णन किया जायगा, तथापि, नायक तो जिसका उत्कर्ष वर्णन किया गया है, उसका मार देनेवाला न है, वस, इतना होने से ही यह वर्णन नायक के उत्कर्ष को बढ़ा देगा; अतः ऐसे वर्णन मे कोई दोष नही। तो हम कहेंगे कि यदि यो मानने लगोगे, तो जिस तरह किसी बड़े राजा को किसी कंगाल भील ने केवल जहरीला बाण फेंक देने आदि के कारण मार डाला हो, ऐसी दशा मे उस महाराज की अपेक्षा उस भील का कुछ भी उत्कर्ष नही हो सकता; उसी तरह जिसका वर्णन किया जा रहा है, उस नायक का भी कुछ उत्कर्ष नही होगा। बस, झगड़ा निवृत्त!