पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२६८

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शब्द और अर्थ मे भी रहता है, केवल रस मे ही नहीं, अतः 'शब्द और अर्थ के माधुर्य-प्रादि को कल्पित नही कहना चाहिए (जैसा कि प्राचीन विद्वान कहते हैं)। ये हैं हमारे (पण्डितराज)-जैसे लोगों के विचार।

अत्यन्त प्राचीन आचार्यों का मत

अत्यन्त प्राचीन आचार्यों का तो मत है कि-

श्लेषः प्रसादः समता माधुर्यं सुकुमारता।
अर्थव्यक्तिरुदारत्वमोजः कान्तिसमाधयः॥

श्लेष, प्रसाद, समता, माधुर्य, सुकुमारता, अर्थव्यक्ति, उदारता, ओज, कांति और समाधि ये दश शब्दो के गुण और दश ही अर्थों के गुण हैं। नाम दोनों के, वे ही हैं, पर लक्षण भिन्न-भिन्न हैं। अच्छा, क्रमशः सुनिए-

शब्द-गुण

श्लेष

इसलिये कि भिन्न-भिन्न शब्द भी एक ही 'शब्द से प्रतीत हों, अत्यंत समीप-समीप में एक जाति के वर्णों की विशेष प्रकार की रचना. जिसे गाढत्व भी कहते हैं, 'श्लेषगुण कहलाता है। यही लिखा भी है-'श्लिष्टमस्पष्टशैथिल्यम्'; अर्थात् उस रचना को श्लेषगुण से युक्त कहा जाता है, जिसमे शिथिलता दिखाई न दे। जैसे-