पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२७०

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माणिक्यावलिकान्तिदन्तुरतरैर्भूषासहस्रोत्करै-
र्विन्ध्यारण्यगुहागृहावनिहारतत्कालमुल्लासिताः॥

इस पद्य मे 'यस्मिन्' शब्द तक शिथिलता है, फिर 'भ्रु' शब्द तक गाढ़ता है और फिर 'नयने' शब्द तक शिथिलता है-इत्यादि समझ लेना चाहिए।

समता

आरंभ से अंत तक एक ही प्रकार की रीति*[१] (रचना) में होने का 'समता' कहते हैं। जैसे कि आगे-'माधुर्य के उदाहरण मे-है। वहाँ उपनागरिकावृत्ति से ही प्रारंभ और उसी से समाप्ति की गई है।

माधुर्य

जिनके आगे संयुक्त अक्षर हों ऐसे द्वस्वों के अतिरिक्त अन्य अक्षरों से रचना की गई हो और अलग-अलग पद -अर्थात् समास तथासंधियाँ अधिक न हों, तो 'माधुर्य' गुण कहलाता है। जैसे

  1. रीतियाँ तीन है-उपनागरिका, परुषा और कोमला। इन्हीं को वैदर्भी, गौड़ी और पांचाली भी कहते हैं। पहली रीति माधुर्य को प्रकट करनेवाले वर्षों से युक्त, दूसरी ओज को प्रकट करनेवाले दों से युक्त और तीसरी माधुर्य और शोज दोनों गुणों को प्रकट करनेवाले वर्षों से अतिरिक्त प्रसाद गुणवाले अक्षरो से ही युक्त होती है।