पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२७२

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'नितरां परुषा सरोजमाला......' इत्यादि पूर्वोक्त पद्य आदि में।

उदारता

कठिन अक्षरों की रचना, जिसे विकटता माना जाता है, 'उदारता' कहलाती है। जैसे-

  • [१] प्रमोदभरतुन्दिलप्रमथदत्ततालावली-

विनोदिनि विनायके डमरुडिण्डिमचानिनि।
ललाटतटविस्फुटन्नवकृपीटयोनिच्छटों
हठोद्धतजटोद्भटो गतपटो नटो नृत्यति॥

अच्छा, यहाँ एक विचार और भी सुनिए। 'काव्यप्रकाशा के टीकाकार व्याख्या करते हैं कि 'पदों के नाचते-से प्रतीत होने का नाम विकटता है। और उदाहरण देते हैं 'स्वचरणविनिविष्टै पुरैनर्तकीनाम्' इत्यादि। इस विषय मे. हमे यह कहना है कि उनकी इस तरह की विकटतारूपी उदारता का प्रोज-गुण में समावेश करनेवाले काव्य-प्रकाशकार उनके अनुकूल कैसे हुए-इनकी और उनकी कैसे एक राय हो गई इसे वे ही जाने क्योंकि यहाँ ओज-गुण अधिकता से


  1. अत्यंत आनंद मे फूले हुए प्रमथ लोगों की दी हुई तालियों से विनोदयुक्त विनायक-देव का डमरु डम्-डमा डम् बज रहा है, और जिनके ललाट-स्थल से अग्नि की नवीन छटा फूटकर निकल रही है, वह बलात उछाली हुई जटा के कारण विकट नंगे नटशिव-नाच रहे है।