पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२७५

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यहाँ पूर्वार्ध मे आरोह है और तीसरे चरण में अवरोह । यद्यपि गंगा आदि शब्दों में माधुर्य को अभिव्यक्त करनेवाले वर्ण भी हैं, तथापि वे लवे समास के बीच में आ गए हैं, अतः माधुर्य ऊँचा नही हो सकता, वह समास के चक्कर मे आकर दब गया है। हाँ, उत्तरार्ध में तो वह भी है। ये हैं दस शब्दो के गुण।

अर्थगुण

श्लेष

इसी तरह-

चतरता से काम करना, उसका प्रकट न होने देना, उसका सिद्ध कर देनेवाली युक्ति, इनका एक के बाद दूसरी क्रियाद्वारा एक ही स्थल में इस प्रकार वर्णन करना कि परस्पर का संबंध बना रहे श्लेष कहलाता है। जैसा कि अमरुक कवि का निम्नलिखित पद्य है-

दृष्ट्वैकासनसंस्थिते प्रियतमे पश्चादुपेत्यादरा-
देकस्या नयने पिधाय विहितक्रीडानुवन्धच्छलः।
ईषद्वक्रितकन्धरः सपुलका प्रेमोल्लसन्मानसा-
मन्तर्हासलसत्कपोलफलकां धूर्त्तोऽपरां चुम्वति॥


लचकती हुई लहरो के मित्र (अर्थात् उनके समान) एवं निरा अमृत बरसानेवाले वचनों की नाट्यशाला है अर्थात् जहाँ ऐसे वचन सर्वदा नाचते ही रहते है।