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यह जो अर्थ की निर्मलता है, इसका नाम है 'प्रसाद-गुण'। जैसे-
कमलानुकारि वदनं किल तस्याः
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कमल अनुहरत तासु मुख
उसका मुख कमल की नकल करनेवाला है। और यदि इसी को यों कहा जाय कि-
कमलकान्त्यनुकारि वक्त्रम्
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कमल-कान्ति अनुहरत मुख
(उसका) मुख कमल की कान्ति की नकल करनेवाला है तो यह इसका प्रत्युदाहरण हो जायगा।
समता
जो प्रारम्भ किया गया है, वह टूटने न पावे-ज्यों का त्यों निभ जावे-यह जो विषमता का न होना है, इसी को 'समता-गुण' कहते हैं। जैसे-
हरिः पिता हरिर्माता हरिर्भ्राता हरिः सुहृत्।
हरिं सर्वत्र पश्यामि हरेरन्यन्न भाति मे॥
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हरि माता हरि ही पिता हरि प्राता हरि मित्र।
हरि ते धान न लखहुँ मै हरि देखौं सर्वत्र॥