पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२८२

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जैसा कि लिखा है- पदार्थे वाक्यरचना वाक्यार्थे च पदाभिधा। प्रौढिर्व्याससमासौ च साभिप्रायत्वमस्य च॥

अर्थात् एक पद के अर्थ मे वाक्य की रचना, वाक्य के अर्थ मे एक पद का वर्णन करना एवं किसी भी बात का विस्तार और संक्षेप करना, यह चार प्रकार की प्रौढ़ि-अर्थात् वर्णन करने की विचित्रता और विशेषणों का किसी अभिप्राय से युक्त होना-इस तरह ओज-गुण पाँच प्रकार का होता है। जैसे-

सरसिजवनबन्धुश्रीसमारम्भकाले
रजनिरमपराज्ये नाशमाशु प्रयाति।
परमपुरुषवक्त्रादुद्गतानां नराणां
मधु-मधुरगिरां च प्रादुरासीद्विनोदः॥

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जलज-विपिन के सुजन केरि छवि-जनम-समय मे।
रजनि-रमन के रम्य राज्य के होत विलय मे॥
जनमे हैं जे परम-पुरुष के वदन-कमल-सन।
करत वहै सुविनात मनुज अरु मधुर-वचन-गन॥

जिस समय कमल-वन के वाधव भगवान् भुवन-भास्कर की शोभा का प्रारंभ हो रहा था और निशा-नाथ चंद्रदेव का राज्य शीघ्रता से नष्ट हो रहा था, उस समय परम पुरुष