पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२८७

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नहीं। उनमे से पहला अर्थात् पहले वर्णन न की गई बात का वर्णन करना, जैसे-

  • [१] तनयमैनाकगवेषणलम्बीकृतजलधिजठरमविष्टहिमगिरिभुजायमानाया भगवत्या भागीरथ्याः सखी।

इत्यादि में है, और दूसरा-पहले वर्णन की गई बातों की छाया तो प्रायः सर्वत्र ही है। यह है अत्यंत प्राचीन आचार्यों का सिद्धांत।

अन्य आचार्यों का मत

गुण २० न मानकर ३ ही मानने चाहिएँ। अन्य विद्वान तो उपर्युक्त गुणों मे से कुछ को पूर्वोक्त-माधुर्य, ओज और प्रसाद नामक-तीन गुणों से एवं आगे वर्णन किए जानेवाले दोषो के अभावो और अलंकारों से निरर्थक सिद्ध करते हैं, तथा कुछ को विचित्रतामात्र और कही कही दोषरूप मानते हैं, अतः उतने स्वीकार नहीं करते। अर्थात् वे २० न मानकर, ३ ही गुण मानते हैं। अच्छा, उनके विचार भी सुनिए। वे कहते हैं-

शब्द-गुणों मे से श्लेष, उदारता, प्रसाद और समाधि इन गुणो का ओज को ध्वनित करनेवाली रचना मे अंतर्भाव हो जाता है। यदि आप कहे कि-श्लेष और उदारता, जो कि सब अंशों मे गाढ़ रचनारूप होते हैं, का अंतर्भाव ओज को

  1. * इसका अर्थ पृ॰ ४८ मे देखो।