पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२९१

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ज्ञानरूप वस्तु है, सो वह कविता का कारण है, गुण नहीं। और यदि ऐसा न मानो तो हम आप से कहेगे कि प्रतिभा को भी काव्य का गुण क्यों नहीं मानते, क्योंकि आलोचना और प्रतिभा दोनों ही एक प्रकार के ज्ञान हैं, फिर जब प्रतिभा को काव्य का कारण माना जाता है, तो आलोचना को गुण मानने मे क्या प्रमाण है? अतः अंततोगत्वा तीन हो गुण सिद्ध होते हैं, बीस नहीं। यह है 'मम्मट-भट्ट'-आदि का कथन।

माधुर्य-व्यञ्जक रचना

उनमें से माधुर्य-गुण को ध्वनित करनेवाली रचना निम्नलिखित प्रकार की होती है। वह, टवर्ग के अतिरिक्त अन्य वर्गों के प्रथम और तृतीय अक्षरों, तथा श-ष-स एवं य-रल-व से बनी हुई; समीप समोप में प्रयोग किए हुए अनुखारों, परसवर्णों और केवल अनुनासिकों से शोभित; जिनका आगे वर्णन किया जायगा, उन साधारणतया और विशेषतयानिषेध किए हुए संयोगादिकों के स्पर्श से शून्य और समास के प्रयोगों से रहित अथवा उसके कोमल प्रयोगों से युक्त होनी चाहिए। वर्गों के दूसरे और चौथे अक्षर-ख-घ आदि-यदि दूर दूर पाए हो, तो वे इस गुण के न अनुकूल होते हैं, न प्रतिकूल। हाँ, यदि उनका समीप समोप मे प्रयोग हो और उनसे अनुप्रास बन जाते हों, तो प्रतिकूल भी हो जाते हैं। कुछ विद्वानों का यह भी कथन है कि टवर्ग से भिन्न वर्गों के पॉचो अक्षर समान रूप से ही माधुर्य को