पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/२९४

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और बड़े बड़े समासवाला होता है। इस बंध के अंदर आए हुए वर्गों के पहले और तीसरे-अर्थात् क-ग आदि अक्षर यदि संयुक्त न हों, तो न अनुकूल होते हैं, न प्रतिकूल; और यदि संयुक्त हो, तो अनुकूल ही हो जाते हैं। इसी तरह अनुखार और परसवर्णों को भी समझिए वे भी न अनुकूल हैं, न प्रतिकूल।

इसके उदाहरण हैं 'अयं पततु निर्दयम् ..'आदि; जो कि पहले रौद्र-रस आदि के उदाहरणों मे लिखे जा चुके हैं। (हिंदी मे महाकवि भूषण की रचना प्रायः इसी गुण का उदाहरण है)

प्रसादव्यञ्जक रचना

जिसके सुनते ही वाक्य का अर्थ हाथ के बेर की तरह दीखने लगे-उसके समझने के लिए किंचित् भो प्रयास न करना पड़े वह रचना प्रसाद-गुण को अभिव्यक्त करनेवाली होती है। यह गुण सब-रस, भाव आदि-मे रहता है, किसी विशेष प्रकार के रस अथवा भाव मे हो रहता हो, सो नहीं। प्रायः मेरे (पंडितराज के) सभी पद्य इस गुण के उदाहरण हो सकते हैं; तथापि जैसे-

चिन्तामीलितमानसा मनसिजः सख्या विहीनप्रभाः
प्राणेशः प्रणयाकुलः पुनरसावास्तां समस्ता कथा।
एतत् त्वां विनिवेदयामि मम चेदुक्तिं हितां मन्यसे
मुग्धे! मा कुरु मानमाननमिदं राकापतिर्जेष्यति॥

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