पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३००

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गुरु-अक्षर दो प्रकार के होते हैं-एक दीर्घ, और दूसरे वे जिनके आगे संयोग होता है। उनमें से, पूर्वोक्त उदाहरणों मे दीर्थो के बीच मे आने के कारण अश्रव्यता मिट गई—यह दिखाया गया है। अब जिन अक्षरों के आगे संयोग होता है, उनके बोच मे आने से प्रश्रव्यता की निवृत्ति का उदाहरण सुनिए-

  • [१]सदा जयानुषङ्गाणामङ्गानां सङ्गरस्थलम्।

रङ्गाङ्गणमिवाभाति तत्तत्तुरगताण्डवैः॥

यहाँ 'तत्तत्तु' में संयुक्त तकारों के द्वारा अश्रव्यता निवृत्त हो गई। यहाँ एक बात और समझ लेने की है। वह यह कि गुरु-खर जिन दो अक्षरो के बीच मे आता है, उन दो मे एक के बाद दूसरे के आने के कारण, जो अश्रव्यता उत्पन्न हो जाती है, उसे ही दूर करता है, इस कारण, पूर्वोक्त 'यथा यथा तामरसायतेक्षणा...' इस पद्य मे 'यथा ता' इस भाग में और 'वथा तथा त इस भाग मे थकार के अनंतर जो तकार आए हैं, उनका दोष दूर हो जाने पर भो तकार के बाद थकार आने के कारण जो अश्रव्यता आ गई है, वह ज्यों की त्यों है; क्योंकि उनके बीच मे कोई गुरु नही, कितु हस्व प्रकार है।


  1. * कवि अङ्ग देश के राजाओ का वर्णन करता है कि जिनके पीछे सदा विजय फिरा करती है जो अब तक कभी परास्त नहीं हुए, उन अंग देश के राजामो का वह युद्ध-स्थल उन खेत के घोड़ो के नृत्यों से नाटकघर के आंगन सा प्रतीत होता है।