पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३०१

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इसी प्रकार तीन अथवा तीन से अधिक अक्षरो का संयोग भी प्राय: अश्रव्य होता है, जैसे-राष्ट्र तवोष्ट्रय. परितश्चरन्ति' यहाँ 'ष्ट्र। इस तरह, अनुभव के अनुसार, ऐसे ऐसे कर्णकटुता के अन्य भेद भी समझ लेने चाहिएँ।

पूर्वपद के अन्त मे दीर्घ स्वर हो, और उसके आगे दूसरे पद मे संयोग हो, तो उसका एक बार भी प्रयोग अश्रव्य*[१] होता है, और यदि बार-बार हो, तो बहुत ही अधिक। जैसे-

[२]हिरिणीप्रेक्षणा यत्र गृहिणी न विलोक्यते।
सेवितं सर्वसंपद्भिरपि तद्भवनं वनम्॥

यहाँ पूर्व-पद 'हरिणी' शब्द के आगे पकार और रेफ का संयोग है। पर, यदि दीर्घ स्वर और उसके आगे का संयोग दोनो एक ही पद मे हो, तो वैसी अग्रव्यता नहीं होती, जैसे'जाग्रता विचितः पन्थाः शाववाणां वृथोद्यमः' इत्यादि में।

पर-सवर्ण‡[३] के कारण जो संयोग होता है, उसका दीर्घ के अनंतर विद्यमान होना, नाममात्र भी अश्रव्य नहीं होता क्योकि वह सर्वथा भिन्न-पद मे होता नही, और मधुर भी होता है, जैसे-'तान्तमालतरुकान्तिलङ्घिनीम् ..' इत्यादि पूर्वोक्त पद्य


  1. * यह दोष हिंदी मे नही होता, क्योकि वहा भिन्न-पद मे संयोग होने पर पूर्व-पद के स्वर पर जोर देने की रीति ही नहीं है।
  2. † जहाँ मृगनयनी गृहिणी दिखाई नहीं देती, वह घर सब सपत्तियों से युक्त होने पर भी वन है।
  3. ‡ यह सब शास्त्रार्थ भी केवल संस्कृतवालो के काम का है।