पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३०२

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में। यहाँ 'वान्तमाल' और 'नीङ्किङ्करी' मे जो पर-सवर्ण किया गया है, वह पूर्व पद से भी संबंध रखता है, इस कारण, इस संयोग को, मिन्न-पद मे होनेवाला, नहीं कहा जा सकता। पर जिन लोगों का यह मत है कि-'संयुक्त वर्षों में प्रत्येक की संयोग संज्ञा माननी चाहिए।' उनके विचारानुसार भी "तान्तमाल" मे त और नदोनों संयोग हैं सही पर तमाल का पहला वर्ण 'त' संयोग भिन्न पद मे रहने पर भी 'ता' के दीर्घ पा से अव्यवहित पर नहीं है, क्योंकि बीच मे परसवर्ण 'न' का व्यवधान है। अत: समुदाय की संयोग संज्ञा माननेवालों के मत से संयोग भिन्न पद-गत नही हुआ इससे और प्रत्येक की संयोग संज्ञा माननेवालो के मत से, संयोग होने पर भी वह बीच में व्यवधान डालनेवाले परसवर्ण के आ जाने से प्रश्रव्य नहीं हुआ। इसी पद्य मे 'नवाम्बुद' शब्द मे 'नव' और 'अम्बुद' शब्द के व क अ और अम्बुद के अ के स्थान मे जो आ दीर्घ हुआ है, वह व्याकरण की परिभाषा के अनुसार एकादेश है, अतः वह दोनों पदों से पृथक् पृथक संबध रख सकता है*[१]। सो वह जब पूर्व पद का भाग गिना जाय, तब 'म्बु' मे जो संयोग है, वह यद्यपि भिन्न-पद-गत भी है और दीर्घ से आगे भो कि जिसके बीच में कोई व्यवधान न हो। तथापि यहाँ 'मिन्न-पद-गत' संयोग उसे ही माना गया है, जो किसी एक पद के अन्तर्गत न हो, अतः कुछ


  1. * देखो-'अन्सादिवच्च' सूत्र की कौमुदी।