पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३०९

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रेफों के द्वारा बने हुए संयोग का बार-बार प्रयोग, जैसे-

  • [१] तुलामनालोक्य निजामखर्व गौराङ्गि! गर्व न कदापि यायाः।

लसन्ति नानाफलभारवत्यो लताः कियत्यो गहनान्तरेषु॥

पर, यदि "†[२]तुलामनालोक्य महीतलेऽस्मिन्। बना दिया जाय, तो ठीक हो जाय।

ल. म और न के अतिरिक्त अन्य व्यंजनों का उन्हीं के साथ संयोग का बार बार प्रयोग; जैसे-

[३] विगणय्य मे निकाय्यतामनुयातासि नैव तन्न्याय्यम्।

पर, ल, म और न का जो अपने आपके साथ संयोग होता है, वह तो उतना कठोर नही होता; जैसे-

§[४] इयमुल्लसिता मुखस्य शोभा परिफुल्ल नयनाम्बुजद्वयं ते।
जलदालिमयं जगद्वितन्वन् कलितःक्वापि किमालि! नीलमेघः॥


  1. * नायक कहता है-हे गौरांगि! अपनी समानता न देखकर तुझे अधिक अभिमान न करना चाहिए। जंगलो मे अनेक फलों के भार से झुकी हुई कितनी लताएं शोभित हो रही है।
  2. † इस पृथिवीतल पर समानता न देखकर"।
  3. ‡ नायिका नायक से कहती है मेरे घर का निरादर करके (तू) उस (सपत्नी) के पीछे लगा हुआ है, यह न्यायोचित नहीं है।
  4. § सखी सभोगचिह्निता गोपी से कह रही है-हे सखी! तेरे मुख की यह शोभा उल्लास युक्त हो रही है, और तेरे दोनों नयन-कमल पूरे