पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३१०

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वर्गों के प्रथम से लेकर चतुर्थ पर्यंत वणे मे से किन्हीं दो के संयोग का बार-बार प्रयोग, जैसे-

  • [१]आ-सायं सलिलभरे सवितारमुपास्य सादरं तपसा।

अधुनाऽब्जेन मनाक्तद मानिनि! तुलना मुखस्याऽऽता॥

यहाँ उत्तरार्ध सुंदर नहीं है। पर, यदि†[२] 'सरसिजकुलेन संप्रति भामिनि! ते मुखतुलाऽधिगता' यो बना दिया जाय, तो उत्तम हो जाय।

झयों अर्थात् वर्गों के प्रथम, द्वितीय, तृतीय और चतुर्थ वर्गों में से किन्हीं दो सवर्णों के संयोग का एक बार प्रयोग; जैसे-

[३]अयि! मन्दस्मितमधुर वदनं तन्वाङ्गि! यदि मनाक्कुरुषे।
अधुनैव कलय शमितं राकारमणस्य हन्त! साम्राज्यम्॥



खिल रहे हैं, सों, कहीं, सब जगत् को मेघमालामय बनानेवाला नील-मेघ (भगवान् श्रीकृष्ण) मिल गया है क्या?

  1. * दूती अथवा सखी मानिनी नायिका से कहती है कि हे मानिनि! साझ तक गहरे जल में रह कर, भगवान सूर्य की उपासना करने के अनतर, अब-दूसरे दिन में कमल ने तेरे मुख की किञ्चिन्मात्र समानता प्राप्त की है।
  2. † हे कोपकारिणी! अब जाकर कमलों के समूह ने तेरे मुख की समानता प्राप्त की है।
  3. ‡ हे कृशांगि! यदि तू अपने मुख को, थोड़ा भी, मंदहास से मधुर कर ले, तो हप है कि निशानाथ चंद्र-देव का साम्राज्य शांत हुआ ही समझ, फिर उसकी तिथि कोई न पूछेगा।