पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३११

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यदि आप शंका करें कि यहाँ जो दो ककारो का संयोग है, 'उसका तो व्यंजनों का, जो अपने आपके साथ, संयोग निषिद्ध माना गया है, उसी से निषेध हो जाता है, और क ख का संयोग हो, तो, वह महा-प्राणो के संयोग का जो निषेध किया गया है, उससे गतार्थ हो जाता है। रहा तीसरा संयोग, सो वह हो ही नहीं सकता; अतः दो सवर्ण झयों का निषेध जो आपने पृथक् लिखा है, उसके लिये कोई अवकाश ही नहीं रहता, फिर उसके लिखने से क्या फल सिद्ध हुआ? इसका समाधान यह है कि दो सवर्ण झयों का संयोग यदि एक बार हो, तथापि दूषित होता है, सो यह उससे मिन्न है; अन्यथा 'मनाक्कुरुषे यह निर्दोष हो जायगा क्योंकि यहाँ व्यंजन का अपने आपके साथ संयोग तो है, पर बार बार नहीं।

महाप्राणों के द्वारा बने हुए संयोग का प्रयोग; जैसे (पूर्वोक्त श्लोक का पूर्वार्ध यो बना दीजिए)

  • [१]अयि मृगमदबिन्दु चेद्भाले बाले! समातनुषे।

और शेष उत्तरार्ध वही रखिए।

इसी तरह, 'त्व' प्रत्यय, यङत, यलुङन्त तथा अन्य इसी प्रकार के प्रयोग, यद्यपि वैयाकरण लोगो को प्रिय लगते हैं, तथापि मधुर-रस मे उनका प्रयोग नहीं करना चाहिए। इसी प्रकार कवि को उचित है कि वह, व्यंग्यों के आस्वादन से


  1. * हे बाले! यदि ललाट पर कस्तूरी की बिन्दी लगा लेगी, तो