पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३१७

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पर झयो के द्वारा बने हुए संयोग जिनके आगे हैं, उन हखों का भी प्रयोग है। तथा शनैर्निद्रा' इस जगह और 'निर्वये पत्युमुखम्' इस जगह रेफ के द्वारा बने हुए संयोग की, और झयों के द्वारा बने हुए संयोग जिनके आगे हैं, उन हखों की प्रचुरता है। एवम् 'वित्रब्धम्' इस जगह महाप्राणों के द्वारा बना हुआ संयोग, 'लज्जा' इस जगह दो सवर्ण झयों का अपने ही साथ संयोग और 'मुखी प्रियेण' इस जगह भिन्न-पदगामी दोध के पहले संयोग है। इसी प्रकार 'क्त्वा' प्रत्यय का पाँच बार और 'लोक' धातु का दो बार प्रयोग भी कवि के पास रचना की सामग्री की कमी को प्रकाशित करता है। पर, जाने दीजिए, दूसरों के काव्यों पर विचार करने की हमे क्या आवश्यकता है।

अच्छा, तो इस तरह रसों का संक्षेप से निरूपण हो चुका।

भाव

भाव का लक्षण

अब 'भाव-ध्वनि' का निरूपण किया जाता है। यहाँ सबसे पहले यह विचार करना है कि 'भाव' कहते किनको हैं ? उनका क्या लक्षण है? आप कहेंगे कि इसमे कौन कठिन बात है, सीधा तो है कि "विभावों और अनुभावों के अतिरिक्त जो रसों के व्यंजक हो-जिनसे रस अभिव्यक्त हो, उनका नाम 'भाव' है"। पर, यह ठीक नहीं; इस लक्षण की