पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३२

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युवती की आसक्ति को प्रमाणित करनेवाले श्लोक उनकी किसी पुस्तक में नहीं मिलते। सो यह कोई ऐसी दुःसमाधेय बात नहीं है; क्योंकि सभी कवियों के सभी पद्य पुस्तकों मे संगृहीत नहीं होते, कुछ फुटकर भी रह जाते हैं। फिर पंडितराज जैसे विद्वान् अपनी पुस्तक में उन उन्मादक दिवसों के लिखे हुए कुसंसर्गसूचक श्लोकों को संगृहीत करते यह भी अघटित ही है।

अस्तु, कुछ भी हो। हम एक महा विद्वान् को कलंकित करना नहीं चाहते; पर इतिहास की दृष्टि से हमारे विचार में जो कुछ सत्य आया, उसे छिपाना भी उचित नहीं था। हाँ, इतना अवश्य सिद्ध है कि अप्पय दीक्षित और भट्टोजि दीक्षित पंडितराज के समय मे वर्त्तमान और जाति के सरपंच थे, और उनको इन पर यवन-संसर्ग का संदेह था, तथा इसी कारण इनका उनका मनोमालिन्य था। बाल कवि के श्लोक से यह भी सिद्ध है कि अप्पय दीक्षित की अंतिमावस्था में इनका निस्तार भी हो गया था। पर, इनका वर्षों का द्वेष इतने मात्र से सर्वथा शुद्ध न हुआ और वह रसगंगाधर में झलक ही आता है।

हाँ, दूसरी किंवदंती में जो यह कहा गया है कि 'वे डूब मरे' सो सर्वथा मिथ्या है; क्योंकि रसगंगाधर गंगालहरी के बहुत पीछे बना है और इसमें स्थान स्थान पर उसके पद्य उद्धृत हैं। तीसरी किंवदंती भी मिथ्या प्रतीत होती है, क्योंकि अप्पय दीक्षित के सामने पंडितराज का वृद्ध होना किसी तरह सिद्ध नहीं होता।