पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३२०

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के लिए 'आस्वादन मे आनेवाली' यह चित्तवृत्ति का विशेषण रक्खा गया है। सो भी ठीक नहीं; क्योंकि

कालागुरुवं सा हालाहलवद्विजानतो नितराम्।
अपि नीलोत्पलमालां वाला व्यालावलिं किलामनुते॥

  • ***

असित-अगर विष-सरिस वह समुमति मन मे बाल।
नील-कमल-मालहिं मनो मानत व्याल कराल॥

एक सखी दूसरी सखी से एक वियोगिनी की कथा कह रही है कि अगर को जहर के समान समझनेवाली वह बालिका नील-कमलों की माला को भी, माना. सर्पो की पंक्ति मानती है।

इस स्थान पर, सहृदय भावक को, जो जहर की बराबरी का ज्ञान हो रहा है, उसमे इस लक्षण की प्रतिव्याप्ति हो जायगी। वह ज्ञान विप्रलंभ-शृंगार का अनुभाव है-उसके द्वारा उत्पन्न हुआ है; अतः रस को ध्वनित करनेवाले आस्वादन मे आनेवाला भी है; क्योंकि जैसे भावों का आस्वादन किया जाता है वैसे ही अनुभावों का भी किया जाता है; और वह ज्ञान है, अतः चित्तवृत्ति रूप भी है।

अब यदि यह कहो कि-भावों में जो भावत्व धर्म रहता है, वह अखण्ड-उपाधि है, अतः उसके लक्षण-वक्षण की कुछ