पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३२४

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१-हर्ष

उनमें से वाञ्छित पदार्थ की प्राप्ति आदि से जो एक प्रकार का सुख उत्पन्न होता है, उसे 'हर्ष' कहते हैं। यही कहा भी गया है

देवभर्त्तृगुरुस्वामिप्रसादः, प्रियसङ्गमः।
मनोरथाप्तिरमाप्यमनोहरधनागमः॥
तथोत्पत्तिश्च पुत्रादेर्विभावो यत्र जायते।
नेत्रवक्त्रप्रसादश्च पियोक्तिः पुलकोद्गमः॥
अश्रुस्वेदादयश्चानुभावा हर्ष तमादिशेत्॥

देवता, पति, गुरु और स्वामी की प्रसन्नता, प्रिय समागम, इच्छित वस्तु की प्राप्ति, दुर्लभ और लोभनीय धन का लाभ तथा पुत्र आदि का जन्म जिसके विभाव होते हैं, और नेत्र तथा मुख की प्रसन्नता, प्रिय वचन, रोमांच, आँसू और प्रस्वेद आदि जिसके अनुभाव होते हैं, उसको 'हर्ष' कहते हैं। उदाहरण लीजिए-

अवधौ दिवसावसानकाले भवनद्वारि विलोचने दधाना।
अवलोक्य समागतं तदा मामथ रामा विकसन्मुखी वभूव॥

  • ***

अवधि-दिवस संझा-समै दिए दीठि गृह-द्वारि।
भई प्रिया विकसितमुखी आयो मोहिँ निहारि ॥

नायक अपने मित्र से कहता है कि अवधि का दिन था, साँझ का समय था; प्रिया ने अपनी आँखें घर के द्वार पर

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