पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३२५

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लगा रखी थी वह टकटकी लगाकर दरवाजा देख रही थी: उसी समय उसने देखा कि मैं आ गया हूँ, फिर क्या था, उसका मुँह खिल उठा।

यहाँ प्यारे का आगमन विभाव है और मुँह का खिल उठना अनुभाव।

२-स्मृति

दार्थों के देखने सुनने-आदि से जो हृदय पर संस्कार हो जाता है, उस संस्कार के द्वारा जो ज्ञान उत्पन्न होता है, उसे 'स्मृति' कहते हैं। जैसे

तन्मञ्जमुन्दहसितं श्वसितानि तानि
सा वै कलंकविधुरा मधुराननश्रीः।
अद्यापि मे हृदयमुन्मदयन्ति हन्त!
सायन्तनाम्बुजसहोदरलोचनायाः॥

  • ***

वह मंजुल मृदु हँसन, साँस वे सुभग सुगंधित।
वह कलंक ते विधुर मधुर आनन-दुति विकसित॥
संझा-सरसिज-सरिस तासु लोचन अनियारे।
अजों करत उनमत्त अमित हिय हाय! हमारे।

नायक अपने मित्र से कहता है-शाम के समय के कमलों के समान, अध-मुंदे, नेत्रोंवाली नायिका का वह सुंदर