पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३२७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
( २१२ )

अर्थ मे वर्तमान शक्यता को इतर शक्यताओं से पृथक करनेवाला धर्म ) कहलाता है अतएव हसित का विशेषण लोकोत्तर सौन्दर्य शक्यतावच्छेदक हुआ। शक्यतावच्छेदक के बाधन करने की शक्ति भी पद मे मानी जाती है। तत्पद से भिन्न भिन्न विशेषणों से विशिष्ट जगत के समस्त पदार्थ समझे जाते हैं। उन समस्त विशेषणो को भी व्यवस्थित करने के लिये उनका कोई वास्तव धर्म न होते हुए भी उनमें बुद्धिस्थत्व धर्म उपलक्षणरूप से एक माना जाता है। इसी की एकता से तत्पद में समस्त पदार्थों के बोधन करने की एक शक्ति सिद्ध होती है और तत्पद नानार्थ नहीं माना जाता। यही बुद्धिस्थत्व धर्म या बुद्धि सकल शक्यतावच्छेदकों का अनुगमक या व्यवस्थापक कहा जाता है। यह अनुगमक किसी पद का शक्य अर्थ नहीं माना जाता। यही इस मत का रहस्य है। दूसरा मत यह है किउस पदार्थ का असाधारण रूप मे बोध नही होता, किंतु बुद्धिस्थ पदार्थ के रूप मे ही होता है। अब सोचिए कि बुद्धि और ज्ञान दोनों एक ही पदार्थ के नाम हैं, और स्मृति भी एक प्रकार का ज्ञान ही है; अतः दोनों ही मतो मे 'वत्' शब्द से स्मृति का कुछ संबंध अवश्य हो जाता है। इस कारण अर्थात् यहाँ 'तत्' शब्द का प्रयोग होने के कारण यह काव्य 'स्मृति-भाव' की ध्वनि न हो सकेगा; क्योंकि 'ध्वनि' कहलाने की योग्यता तभी हो सकती है, जब कि व्यंग्य का वाच्य से कुछ संपर्क न हो। इसका समाधान यह है कि पहले मत के अनुसार