पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३३३

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नैवाऽकर्षत्यम्बु नैवाऽम्बुजालिं
कान्तापेतः कृत्यशून्यो गजेन्द्रः॥

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किए सूड कुंडल-सरिस ऊँचत तटिनी-तीर।
कामिनि बिन जड़ गज गहत ना नीरज ना नीर॥

एक दर्शक कहता है कि-हथिनी से वियुक्त हाथी निश्चेष्ट होकर, सूड को गोल किए हुए और ऑखो को सिकोड़े हुए नदी के तट पर तो खड़ा है; पर न जल को खींचता है न कमलों की पंक्ति को।

५-धृति

जिस चित्तवृत्ति के कारण लोभ, शोक श्री भय आदि से उत्पन्न होनेवाले उपद्रव शान्त हो जाते हैं, उसका नाम 'धृति' है। उदाहरण लीजिए

सन्तापयामि हृदयं धावं धावं धरातले किमहम्।
अस्ति मम शिरसि सततं नन्दकुमारः प्रभुः परमः॥

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धाइ-धाइ है। धरनि-तल हिय तपात केहि काज।
राजत मम सिर सरबदा प्रभुवर श्रीवनराज॥

एक भक्त कहता है कि मैं पृथिवीतल में दौड़ दौड़कर क्यों अपने हृदय को संतप्त कर रहा हूँ। मेरे सिर पर परम