पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३३४

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प्रभु, सब स्वामियों के स्वामी, नन्दनन्दन सर्वदा विराजमान हैं-मुझे क्या चिन्ता है, वे अपने-आप संभाल लेंगे।

यहाँ विवेक और धन-संपत्ति आदि विभाव हैं और चपलता आदि की निवृत्ति अनुभाव है। यदि आप कहें कि यहाँ उत्तरार्ध से तो यही बात व्यक्त होती है कि 'मुझे चिन्ता नहीं है', फिर इस पद्य को धृति-भाव की ध्वनि कैसे बताते हो, तो इसका उत्तर यह है कि पूर्वोक्त बात धृति-भाव के लिये उपयुक्त होकर ही अभिव्यक्त होती है, अर्थात् उससे धृति की प्रतीति में सहायता मिलती है अतः उसका अलग अडंगा नहीं समझा जा सकता।

६-शङ्का

'मेरा क्या अनिष्ट होगा' यह जो एक प्रकार की चित्त-वृत्ति है, उसका नाम 'शङ्का' है। उदाहरण लीजिए

विधिवश्चितया मया न यातम्
सखि! सङ्केत-निकेतनं प्रियस्य।
अधुना बत! किं विधातुकामो
मयि कामो नृपतिः पुनर्न जाने॥

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विधि-वञ्चित है ना गई सखि! संकेत-निकेत।
अब जाने मम मदन नृप कहा करै इहि-हेत॥