पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३३५

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नायिका सखी से कहती है कि-हे सखी! विधाता ने मुझे धोखा दिया और मैं अपने प्यारे के संकेत-स्थान पर न जा सकी। अब भय है कि, न जाने, महाराज कामदेव, मेरे विषय मे, क्या करना चाहते हैं।

यहाँ राजा का अपराध विभाव है और, ऊपर से समझ लिए गए, मुँह का फीका पड़ना आदि अनुभाव हैं। इसमें और चिन्ता मे यही भेद है कि यह भय आदि उत्पन्न करती है, अतः कंप-आदि का कारण है, परन्तु चिन्ता उन्हें उत्पन्न नहीं करती।

७-ग्लानि

मानसिक कष्ट और रोग आदि के कारण जो निर्बलता उत्पन्न हो जाती है, उससे उत्पन्न होनेवाला एवं विवर्णता, अंगों की शिथिलता और नेत्रों के फिरने लगने आदि अनुभावों का उत्पन्न करनेवाला जो एक प्रकार का दुःख है, उसे 'ग्लानि' कहते हैं। जैसे-

शयिता शैवलशयने सुषमाशेषा नवेन्दुलेखेव।
प्रियमागतमपि सविधे सत्कुरुते मधुरवीक्षणैरेव॥

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कान्ति-शेष शशि-रेख सम सोई सेवल सेज।
मधुर चितौननि ही सविध थित पिय रही सहेज॥