पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३३९

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चरी उसे' यह अर्थ प्रतीत होता है, जिससे अपनी कृतघ्नता और उसकी कृतज्ञता एवं अपनी निर्दयता और उसकी दयालुता आदि अनेक धर्म ध्वनित होते हैं, जिनसे दैन्य-भाव और भी पुष्ट हो जाता है। इसी तरह 'उसे' शब्द के द्वाराजो स्मृति की थोड़ी-सी प्रतीति होती है, उससे भी दैन्य-भाव की पुष्टि होती है। अतः यहाँ दैन्य भाव ही प्रधान व्यंग्य रहा। कृतन्नता आदि व्यंग्य गुणोभूत रहे। इसलिये यहाँ दैन्य-ध्वनि हुई।

९-चिन्ता

वांछित वस्तु के प्राप्त न होने और अनिष्ट वस्तु के प्राप्त हो जाने से उत्पन्न होनेवाली और विवर्णता, भूमि का लिखना और मुख का नीचा हो जाना आदि अनुभावों का उत्पन्न करनेवाली एक प्रकार की चित्तवृत्ति का नाम 'चिन्ता' है। जैसा कि कहा है-

विभावा यत्र दारिद्रयमैश्वर्यभ्रंशनं तथा।
इष्टापहृतिः, शश्वच्छ्वासोच्छ्वासावधोमुखम्॥
सन्तापः, स्मरण चैव कार्श्यं देहानुपस्कृतिः।
अधृतिश्चानुभावाः स्युः सा चिन्ता परिकीर्त्तिता॥
वितोऽस्याः क्षणे पूर्व पाश्चात्ये वोपजायते॥

अर्थात् जिसमे दरिद्रता, ऐश्वर्य (राज्यादिक) से च्युत हो जाना और वांछित वस्तु का अपहरण विभाव हों, और निरं-