पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३४२

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अधम। उनमे से जिसमे अक्षरों की अस्पष्टता, वाक्यों की असंबद्धता और अत्यन्त मृदु तथा फिसलती हुई चाल का अभिनय किया जाता है, वह तरुण-मद कहलाता है। जिसमे हाथों के फटकारे, फिसल पड़ने और घूमने आदि का अभिनय किया जाता है, वह मध्यम-मद होता है और जिसमे गति रुक जाने, स्मृति नष्ट हो जाने और हिचकी तथा वमन होने आदि का अभिनय किया जाता है. वह अधम-मद होता है। उदाहरण लीजिए-

मधुर-तरं स्मयमानः स्वस्मिन्नेवाऽलपन् किमपि।
कोकनदयंत्रिलोकीमालम्बनशून्यमीक्षते क्षीबः॥

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मधुर-मधुर कछु-कछु हँसत करत मनहि-मन बात।
निरालंब देखत अरुन-चरन जगत मद-मात॥

अत्यन्त मधुर रूप में थोड़ा-थोड़ा हँसता हुआ और अपने-आप ही कुछ भी बोलता हुआ एवं त्रिलोकी को आँखों की ललाई के कारण रक्त-कमल-सी बनाता हुआ मद-मत्त मनुष्य देख रहा है; पर उसे पता नहीं कि वह क्या देखना चाहता है।


कार' के ही मत को पुष्ट करता है, क्योंकि नशे में हँसना उत्तम-पुरुष का काम नहीं। उसे यदि नशे का अधिक चक्कर हुआ तो वह सो जायगा, इत्यादि सहृदयों के प्रत्यक्ष से सिद्ध है।-अनुवादक।