पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३५१

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औत्पातिकैर्मनःक्षेपस्त्रासः कम्पादिकारकः।

अर्थात् उत्पातकारी वस्तुओं से जो मन का विक्षेप होता है, उसे 'त्रास' कहते हैं, और वह कम्प-प्रादि को उत्पन्न करता है। उदाहरण लीजिए-

आलीषु केलीरभसेन बाला मुहुर्ममालापमुपालपन्ती।
आरादुपाकर्ण्य गिरं मदीयां सौदामनीयां सुषमामयासीत्॥
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बाल बात मम सखिन बिच बार-बार बतरात।
दूरहि ते मम सबद सुनि लहि बिजुरी-दुति तात॥

नायक अपने मित्र से कहता है कि-बालिका क्रीड़ा के जोश मे आकर, सखियों मे, मेरी बात-चीत को दुहरा-दुहराकर कह रही थी; पर, दूर से, ज्योही मेरी आवाज सुनी, तत्काल बिजली का-सा चमक्का कर गई-देखते-देखते ओझल हो गई।

यहाँ पति का अपनी बातें सुन लेना विभाव है और भग जाना अनुभाव। 'इस पद्य में लज्जा व्यंग्य है' यह शंका न करनी चाहिए, क्योंकि 'बाला' शब्द के प्रयोग से बालकपन के कारण लज्जा आपही निवृत्त हो जाती है अर्थात् बाल्यावस्था मे लज्जा नहीं, किन्तु त्रास ही हुआ करता है।

पर, यदि कहो कि यहाँ बाला-पद से नायिका के शिशुत्व का बोध कराना अभीष्ट नहीं है, किन्तु उससे नायिका की विशेषता (अल्पवयस्कता) सूचित होती है, तो यह उदाहरण लीजिए-