पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३५७

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नायक, उपभोग के लिये, दो नायिकाओं को दो-पृथकू पृथक-समय देकर, यथोचित समय पर एक नायिका को भोगने के अनंतर, दूसरे समय पर, उसे छोड़कर, दूसरी नायिका को भोगता है, वैसे ही इसने भी रात्रि मे निद्रा को और प्रात:काल मे चेतना को प्रालिंगन किया है। यह समासोक्ति (अलङ्कार) ही यहाँ प्रकाशित होती है।

१९-अमर्ष

दूसरे के किए हुए अपमान आदि अनेक अपराधों से उत्पन्न होनेवाली और मौन तथा वचनों की कठोरता आदि को उत्पन्न करनेवाली जो एक प्रकार की चित्तवृत्ति है, उसे 'अमर्ष' कहते हैं। पहले ही की तरह कारणों को विभाव और कार्यों को अनुभाव समझ लेना चाहिए। उदाहरण लीजिए-

वक्षोजाग्र पाणिनाऽऽमृष्य दूरे
यातस्य द्रागाननाजं प्रियस्य।
शोणाग्राभ्यां भामिनी लोचनाभ्यां
जोषं जोषं जोमेवाऽवतस्थे॥
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पिय चूचुकनि दबाइ कर गयो दूर ततकाल।
तेहिं मुख जोइ-जोइ-जोइ रहि भामिनि करि चख लाल॥