पृष्ठ:हिंदी रस गंगाधर.djvu/३६०

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(भगवान कृष्ण के) नृत्य का आश्चर्य-सहित वर्णन करना प्रारंभ कर दिया, जिससे लोग समझ लें कि यह स्वेद और रोमांच कृष्ण से प्रेम के कारण नही, किन्तु उनके पराक्रम-वर्णन के कारण हुआ है।

यहाँ लज्जा विभाव है और वैसे (भयंकर) कालिय सर्प के फणों पर तांडव करने की कथा का प्रसंग अनुभाव है। इसी तरह भयादिक के द्वारा उत्पन्न होनेवाले अवहित्थ-भाव का भी उदाहरण समझ लेना चाहिए।

२१-उग्रता

तिरस्कार तथा अपमान आदि से उत्पन्न होनेवाली 'इसका क्या कर डालू' इस रूप में, जो चित्तवृत्ति होती है, उसे 'उग्रता' कहते हैं। जैसा कि लिखा है-

नृपापराधोऽसदोषकीर्त्तनं चौरधारणम्।
विभावाः स्युरथा वन्धो वधस्ताडनभर्त्सने।
एते यत्राऽनुभावास्तदौऽयं निर्दयतात्मकम्॥

अर्थात् राजा का अपराध, झूठे दोषों का वर्णन और अपने चोर को रख लेना ये जिसमे विभाव हों और बॉधना, मारना, पीटना और धमकाना ये अनुभाव हो, वह 'उप्रता' होती है, जो कि निर्दयतारूप है। जैसे